by हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन | Hindi Olympiad Foundation गुरु अर्जुन देव का बलिदान हिन्दू धर्म और भारत की रक्षा के लिए अनेक वीरों एवं महान् आत्माओं ने अपने प्राण अर्पण किये हैं, पर उनमें भी सिख गुरुओं के बलिदान का उदाहरण विशेष महत्व रखता है। पाँचवे गुरु श्री अर्जुनदेव जी ने जिस प्रकार आत्मार्पण किया, उससे हिन्दू समाज में अतीव जागृति का संचार हुआ। सिख पन्थ का प्रादुर्भाव गुरु नानकदेव जी द्वारा हुआ। उनके बाद यह धारा गुरु अंगददेव, गुरु अमरदास से होते चौथे गुरु रामदास जी तक पहुँची। रामदास जी के तीन पुत्र थे। एक बार उन्हें लाहौर से अपने चचेरे भाई सहारीमल के पुत्र के विवाह का निमन्त्रण मिला। रामदास जी ने अपने बड़े पुत्र पृथ्वीचन्द को इस विवाह में उनकी ओर से जाने को कहा, पर उसने यह सोचकर मना कर दिया कि कहीं इससे पिताजी का ध्यान मेरी ओर से कम न हो जाये। उसके मन में यह इच्छा भी थी कि पिताजी के बाद गुरु गद्दी मुझे ही मिलनी चाहिए। इसके बाद गुरु रामदास जी ने दूसरे पुत्र महादेव को कहा, पर उसने भी यह कह कर मना कर दिया कि मेरा किसी से वास्ता नहीं है। इसके बाद राम
by हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन | Hindi Olympiad Foundation समाज सुधारक राजा राममोहन राय हिन्दू समाज में सीता, सावित्री, अनसूया आदि सती-साध्वी स्त्रियों की सदा से पूजा होती रही है। सती का अर्थ है मन, वचन, कर्म से अपने पतिव्रत को समर्पित नारी; पर जब भारत में विदेशी और विधर्मियों के आक्रमण होने लगे, तो मुख्यतः राजस्थान में क्षत्रिय वीरांगनाओं ने पराजय की स्थिति में शत्रुओं के हाथों में पड़ने की बजाय आत्मदाह कर प्राण देने का मार्ग चुना। इसके लिए वे एक बड़ी चिता सजाकर सामूहिक रूप से उसमें बैठ जाती थीं। वीर पुरुष भी पीछे नहीं रहते थे। वे सब केसरिया वस्त्र पहनकर, किले के फाटक खोलकर रणभूमि में चले जाते थे। इस प्रथा को ही ‘जौहर’ कहा गया। कुछ नारियाँ अपने वीरगति प्राप्त पति के शव के साथ चिता पर बैठ जाती थीं। इसके लिए भी ‘सती’ शब्द ही रूढ़ हो गया। कुछ और समय बीतने के बाद देश के अनेक भागों (विशेषकर पूर्वांचल) में सती प्रथा का रूप विकृत हो गया। अब हर विधवा अपने पति के शव के साथ चिता पर चढ़ने लगी। कहीं-कहीं तो उसे चिता पर जबरन चढ़ा दिया जाता था। चिता जलने पर ढोल-न