Skip to main content

उत्तम साहित्य के प्रकाशक : पुरुषोत्तम दास मोदी

                      by हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन | Hindi Olympiad Foundation




उत्तम साहित्य के प्रकाशक : पुरुषोत्तम दास मोदी

सामान्य जन तक अच्छा साहित्य पहुँचाने के लिए लेखक, प्रकाशक और विक्रेता के बीच सन्तुलन और समझ होनी अति आवश्यक है। श्री पुरुषोत्तम दास मोदी एक ऐसे प्रकाशक थे, जिन्होंने प्रकाशन व्यवसाय में अच्छी प्रतिष्ठा पायी। उनका जन्म 19 अगस्त, 1928 को गोरखपुर में हुआ था। पुरुषोत्तम मास में जन्म लेेने से उनका यह नाम रखा गया। मोदी जी की रुचि छात्र जीवन से ही साहित्य की ओर थी। उनकी सारी शिक्षा गोरखपुर में हुई। उन्होंने हिन्दी में एम.ए. किया। विद्यालयों में होने वाले साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वे सदा आगे रहते थे।

1945 में उनके संयोजन में सेण्ट एण्ड्रूज कालेज में विराट कवि सम्मेलन हुआ, जिसमें माखनलाल चतुर्वेदी, रामधारी सिंह दिनकर, सुभद्रा कुमारी चौहान, सुमित्रा कुमारी सिन्हा जैसे वरिष्ठ कवि पधारे। इसमें तब के युवा कवि धर्मवीर भारती, जगदीश गुप्त आदि ने भी काव्यपाठ किया। ऐसी गतिविधियों के कारण मोदी जी का सम्पर्क तत्कालीन श्रेष्ठ साहित्यकारों से हो गया।

1950 में शिक्षा पूर्ण कर उन्होंने घरेलू वस्त्र व्यवसाय के बदले प्रकाशन व्यवसाय में हाथ डाला, चूँकि इससे उनकी साहित्यिक क्षुधा शान्त होती थी।  उन्होंने नये और पुराने लेखकों से सम्पर्क किया। 1956 में उन्होंने शिवानी का प्रथम उपन्यास ‘चौदह फेरे’ प्रकाशित किया। इसके बाद माखनलाल चतुर्वेदी और शिवानी के कथा संग्रह प्रकाशित किये। उन दिनों गोरखपुर में मुद्रण सम्बन्धी सुविधाएँ कम थीं। अतः 1964 में वे विद्या की नगरी काशी आ गये।

यहाँ उन्होंने महामहोपाध्याय पण्डित गोपीनाथ कविराज, पण्डित बलदेव उपाध्याय, ठाकुर जयदेव सिंह, डा. मोतीचन्द, डा. भगीरथ मिश्र जैसे प्रतिष्ठित लेखकों की पुस्तकें छापीं। इससे उनके संस्थान ‘विश्वविद्यालय प्रकाशन’ की प्रतिष्ठा में चार चाँद लग गये। अपनी प्रकाशन और प्रबन्ध क्षमता के कारण वे 'अखिल भारतीय प्रकाशक संघ' के लगातार दो बार महामन्त्री भी बने।

मोदी जी का उद्देश्य केवल पैसा कमाना नहीं था। उनकी इच्छा थी कि व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध और श्रेष्ठ साहित्य जनता तक पहुँचे। इसके लिए वे स्वयं पुस्तकों के प्रूफ जाँचा करते थे। जो कार्य आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका को माध्यम बनाकर किया, वही काम मोदी जी ने अपने प्रकाशन में रहते हुए किया। उन्होंने हजारों ग्रन्थों की भाषा शुद्ध की।

मोदी जी बड़े सिद्धान्तवादी व्यक्ति थे। जब उनकी माताजी का देहान्त हुआ, तो घर में ढेरों मेहमान आये थे। उन दिनों गैस की बड़ी समस्या थी। उनकी पत्नी ने पाँच रुपये अधिक देकर एक सिलेण्डर मँगा लिया। जब मोदी जी को यह पता लगा, तो उन्होंने तुरन्त कर्मचारी के हाथ वह गैस सिलेण्डर वापस भिजवाया। उनका सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं से भी बहुत लगाव था। काशी में हिन्दू सेवा सदन, मारवाड़ी अस्पताल, काशी गौशाला, मुमुक्ष भवन जैसी अनेक संस्थाओं को उन्होंने नवजीवन प्रदान किया।

अपने प्रकाशन की जानकारी सर्वदूर पहुँचाने के लिए उन्होंने ‘भारतीय वांगमय’ नामक एक मासिक लघु पत्रिका भी निकाली। इसमें उनके सम्पादकीय बहुत सामयिक हुआ करते थे। उन्होंने अन्तिम सम्पादकीय श्रीरामसेतु विवाद पर शासन को सद्बुद्धि देने के लिए लिखा था। अनेक रोगों से घिरे होने पर भी वे सदा सक्रिय रहते थे। सात अक्तूबर, 2007 को उनका देहान्त हो गया।

Comments

Popular posts from this blog

स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी एक अद्भुत कहानी

by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |  Hindi Olympiad Foundation ये उस समय की बात है जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका में थे। एक बार वे भ्रमण पर निकले एक नदी के पास से गु ज रते हुए उन्होंने कुछ लड़कों को देखा, वे सभी पुल पर खड़े थे और वहां से नदी के पानी में बहते हुए अंडों के छिलकों पर, बंदूक से निशाना लगाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था, यह देख वे उन लड़कों के पास गए और उनसे बंदूक लेकर खुद निशाना लगाने लगे। उन्होंने पहला निशाना लगाया, वो सीधे जाकर अंडो के छिलकों पर लगा फिर उन्होंने दूसरा निशाना लगाया, वो भी सटीक लगा। फिर एक के बाद एक उन्होंने बारह निशाने लगाये, सभी निशाने बिल्कुल सही जगह जाकर लगे। यह देख वे सभी लड़के आश्चर्यचकित रह गए, उन्होंने स्वामी जी से पूछा, “स्वामी जी, आप इतना सटीक निशाना कैसे लगा पाते हैं ? भला कैसे कर पाते हैं आप ये?” इस पर स्वामी विवेकानन्द ने उत्तर दिया, “असंभव कुछ भी नहीं है ।  तुम जो भी काम कर रहे हो, अपना दिमाग पूरी तरह से बस उसी एक काम में लगा दो ।  यदि पाठ पढ़ रहे हो, तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो ।  यदि निशाना साध रहे हो, तो

एक जीवन ऐसा भी - गुरु अर्जुन देव

                                    by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation गुरु अर्जुन देव का बलिदान हिन्दू धर्म और भारत की रक्षा के लिए अनेक वीरों एवं महान् आत्माओं ने अपने प्राण अर्पण किये हैं, पर उनमें भी सिख गुरुओं के बलिदान का उदाहरण विशेष महत्व रखता है। पाँचवे गुरु श्री अर्जुनदेव जी ने जिस प्रकार आत्मार्पण किया, उससे हिन्दू समाज में अतीव जागृति का संचार हुआ। सिख पन्थ का प्रादुर्भाव गुरु नानकदेव जी द्वारा हुआ। उनके बाद यह धारा गुरु अंगददेव, गुरु अमरदास से होते चौथे गुरु रामदास जी तक पहुँची। रामदास जी के तीन पुत्र थे। एक बार उन्हें लाहौर से अपने चचेरे भाई सहारीमल के पुत्र के विवाह का निमन्त्रण मिला। रामदास जी ने अपने बड़े पुत्र पृथ्वीचन्द को इस विवाह में उनकी ओर से जाने को कहा, पर उसने यह सोचकर मना कर दिया कि कहीं इससे पिताजी का ध्यान मेरी ओर से कम न हो जाये। उसके मन में यह इच्छा भी थी कि पिताजी के बाद गुरु गद्दी मुझे ही मिलनी चाहिए। इसके बाद गुरु रामदास जी ने दूसरे पुत्र महादेव को कहा, पर उसने भी यह कह कर मना कर दिया कि मेरा किसी से वास्ता नहीं है। इसके बाद राम

एक जीवन ऐसा भी - अहिल्याबाई होल्कर

           by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation तपस्वी राजमाता अहल्याबाई होल्कर भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है,  उनमें रानी अहिल्याबाई होल्कर का नाम प्रमुख है। उनका जन्म 31 मई, 1725 को ग्राम छौंदी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री मनकोजी राव शिन्दे परम शिवभक्त थे। अतः यही संस्कार बालिका अहल्या पर भी पड़े। एक बार इन्दौर के राजा मल्हारराव होल्कर ने वहां से जाते हुए मन्दिर में हो रही आरती का मधुर स्वर सुना। वहां पुजारी के साथ एक बालिका भी पूर्ण मनोयोग से आरती कर रही थी। उन्होंने उसके पिता को बुलवाकर उस बालिका को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा। मनकोजी राव भला क्या कहते, उन्होंने सिर झुका दिया। इस प्रकार वह आठ वर्षीय बालिका इन्दौर के राजकुंवर खांडेराव की पत्नी बनकर राजमहलों में आ गयी। इन्दौर में आकर भी अहल्या पूजा एवं आराधना में रत रहती। कालान्तर में उन्हें दो पुत्री तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई। 1754 में उनके पति खांडेराव एक युद्ध में मारे गये। 1766 में उनके ससु

एक जीवन ऐसा भी - मिसाइल मैन डॉ. अब्दुल कलाम

                                 by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation मिसाइल मैन डॉ. अब्दुल कलाम क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि उस युवक के मन पर क्या बीती होगी, जो वायुसेना में विमान चालक बनने की न जाने कितनी सुखद आशाएं लेकर देहरादून गया था; पर परिणामों की सूची में उसका नाम नवें क्रमांक पर था, जबकि चयन केवल आठ का ही होना था। कल्पना करने से पूर्व हिसाब किताब में यह भी जोड़ लें कि मछुआरे परिवार के उस युवक ने नौका चलाकर और समाचारपत्र बांटकर जैसे-तैसे अपनी शिक्षा पूरी की थी। देहरादून आते समय केवल अपनी ही नहीं, तो अपने माता-पिता और बड़े भाई की आकांक्षाओं का मानसिक बोझ भी उस पर था, जिन्होंने अपनी  अनेक आवश्यकताएं ताक पर रखकर उसे पढ़ाया था, पर उसके सपने धूल में मिल गये। निराशा के इन क्षणों में वह जा पहुंचा ऋषिकेश, जहां जगतकल्याणी मां गंगा की पवित्रता, पूज्य स्वामी शिवानन्द के सान्निध्य और श्रीमद्भगवद्गीता के सन्देश ने उसेे नये सिरे से कर्मपथ पर अग्रसर किया। उस समय किसे मालूम था कि नियति ने उसके साथ मजाक नहीं किया, अपितु उसके भाग्योदय के द्वार स्वयं अपने हाथों से खोल दिये

हिंदी के पुरोधा - प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत

          by  हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन  |   Hindi Olympiad Foundation Credit: Souvik Das कवि सुमित्रानंदन पंत अपनी कविता के माध्यम से प्रकृति की सुवास सब ओर बिखरने वाले  कवि श्री सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी (जिला बागेश्वर, उत्तराखंड) में 20 मई, 1900 को हुआ था। जन्म के कुछ ही समय बाद मां का देहांत हो जाने से उन्होंने प्रकृति को ही अपनी मां के रूप में देखा और जाना।  दादी की गोद में पले बालक का नाम गुसाई दत्त रखा गया; पर कुछ बड़े होने पर उन्होंने स्वयं अपना नाम सुमित्रानंदन रख लिया। सात वर्ष की अवस्था से वे कविता लिखने लगे थे। कक्षा सात में पढ़ते हुए उन्होंने नेपोलियन का चित्र देखा और उसके बालों से प्रभावित होकर लम्बे व घुंघराले बाल रख लिये। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे बड़े भाई देवीदत्त के साथ काशी आकर क्वींस कॉलिज में पढे़। इसके बाद प्रयाग से उन्होंने इंटरमीडियेट उत्तीर्ण किया। 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ के दौरान जब गांधी जी ने सरकारी विद्यालय, नौकरी, न्यायालय आदि के बहिष्कार का आह्नान किया, तो उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और घर पर रहकर ही हिन्दी, संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी का अध्ययन किया।  प्र