by हिंदी ओलंपियाड फाउंडेशन | Hindi Olympiad Foundation
मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को पोरबन्दर (गुजरात) में हुआ था। उनके पिता करमचन्द गांधी पहले पोरबन्दर और फिर राजकोट के शासक के दीवान रहे। गांधी जी की माँ बहुत धर्मप्रेमी थीं। वे प्रायः रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों का पाठ करती रहती थीं। वे मन्दिर जाते समय अपने साथ मोहनदास को भी ले जाती थीं। इस धार्मिक वातावरण का बालक मोहनदास के मन पर बहुत प्रभाव पड़ा।
बचपन में गांधी जी ने श्रवण की मातृ-पितृ भक्ति तथा राजा हरिश्चन्द्र नामक नाटक देखे। इन्हें देखकर उन्होंने माता-पिता की आज्ञापालन तथा सदा सत्य बोलने का संकल्प लिया। 13 वर्ष की छोटी अवस्था में ही उनका विवाह कस्तूरबा से हो गया। विवाह के बाद भी गांधी जी ने पढ़ाई चालू रखी। जब उन्हें ब्रिटेन जाकर कानून की पढ़ाई का अवसर मिला, तो उनकी माँ ने उन्हें शराब और माँसाहार से दूर रहने की प्रतिज्ञा दिलायी। गांधी जी ने आजीवन इस व्रत का पालन किया।
कानून की पढ़ाई पूरी कर वे भारत आ गये; पर यहाँ उनकी वकालत कुछ विशेष नहीं चल पायी। गुजरात के कुछ सेठ अफ्रीका से भी व्यापार करते थे। उनमें से एक दादा अब्दुल्ला के वहाँ कई व्यापारिक मुकदमे चल रहे थे। उन्होंने गांधी जी को उनकी पैरवी के लिए अपने खर्च पर अफ्रीका भेज दिया। अफ्रीका में उन्हें अनेक कटु अनुभव हुए। वहाँ भी भारत की तरह अंग्रेजों का शासन था। वे स्थानीय काले लोगों से बहुत घृणा करते थे।
एक बार गांधी जी प्रथम श्रेणी का टिकट लेकर रेल में यात्रा कर रहे थे; एक स्टेशन पर रात में उन्हें अंग्रेज यात्री के लिए अपनी सीट छोड़ने को कहा गया। मना करने पर उन्हें सामान सहित बाहर धक्का दे दिया गया। इसका उनके मन पर बहुत गहरा असर पड़ा। उन्होंने अफ्रीका में स्थानीय नागरिकों तथा भारतीयों के अधिकारों के लिए सत्याग्रह के माध्यम से संघर्ष प्रारम्भ कर दिया। इसमें उन्हें सफलता भी मिली।
इससे उत्साहित होकर वे भारत लौटे और कांग्रेस में शामिल होकर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने लगे। उनकी इच्छा थी कि भारत के सब लोग साथ मिलकर अंग्रेजों का मुकाबला करें। इसके लिए उन्होंने मुसलमानों से अनेक प्रकार के समझौते किये, जिससे अनेक लोग उनसे नाराज भी हो गये; पर वे अपने सिद्धान्तों पर अटल रहकर काम करते रहे।
सविनय अवज्ञा, दाण्डी यात्रा, अंग्रेजो भारत छोड़ो..आदि आन्दोलनों में उन्होंने लाखों लोगों को जोड़ा। जब अंग्रेजों ने अलग चुनाव के आधार पर हिन्दू समाज के वंचित वर्ग को अलग करना चाहा, तो गांधी जी ने आमरण अनशन कर इस षड्यन्त्र को विफल कर दिया। 15 अगस्त, 1947 को देश को स्वतन्त्रता मिली; पर देश का विभाजन भी हुआ। अनेक लोगों ने विभाजन के लिए उन्हें और कांग्रेस को दोषी माना।
उन दिनों देश मुस्लिम दंगों से त्रस्त था। विभाजन के दौरान लाखों हिन्दू मारे गये थे। फिर भी गांधी जी हिन्दू-मुस्लिम एकता के पीछे पड़े थे। इससे नाराज होकर नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी, 1948 को सायंकाल प्रार्थना सभा में जाते समय उन्हें गोली मार दी। गांधी जी का वहीं प्राणान्त हो गया।
गांधी जी के ग्राम्य विकास एवं स्वदेशी अर्थ व्यवस्था सम्बन्धी विचार आज भी प्रासंगिक हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि जिन नेहरू जी को उन्होंने जिदपूर्वक प्रधानमन्त्री बनाया, उन्होंने ही उनके सब विचारों को ठुकरा दिया। वह हमेशा एक मजबूत और विकसित भारत देखना चाहती थीं।"
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